अमरता की चाह में बना था विष्णु का ये प्राचीन मंदिर-2

आलीशान मंदिर

बौद्ध रूप ग्रहण करने के काफी सालों बाद तक इस मंदिर की पहचान लगभग खोई रही लेकिन फिर एक फ्रांसीसी पुरात्वविद की नजर इस पर पड़ी और उसने फिर से एक बार दुनिया के सामने इस बेशकीमती और आलीशान मंदिर को प्रस्तुत किया। बहुत से लोग इस मंदिर को दुनिया के सात अजूबों में से एक करार देते हैं।

भारत से जुड़ाव

भारत के राजनैतिक और धार्मिक अवधारणा के आधार पर ही अंगकोर नगरी का निर्माण हुआ था। इसके अलावा अंगकोर मंदिर के निर्माण के पीछे इसे बनवाने वाले राजा का एक खास मकसद भी जुड़ा हुआ था।

अमरता का लालच

दरअसल राजा सूर्यवर्मन हिन्दू देवीदेवताओं से नजदीकी बढ़ाकर अमर बनना चाहता था। इसलिए उसने अपने लिए एक विशिष्ट पूजा स्थल बनवाया जिसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश, तीनों की ही पूजा होती थी। आज यही मंदिर अंगकोर वाट के नाम से जाना जाता है।

अंगकोर की राजधानी

लगभग 6 शताब्दियों तक अंगकोर राजधानी के रूप में पहचानी जाती रही। इसी दौरान अंगकोर वाट की संरचना और बनावट को कई प्रकार के परिवर्तनों से भी गुजरना पड़ा। मूलत: यह मंदिर शिव को समर्पित था, उसके बाद यहां भगवान विष्णु की पूजा होने लगी।

आक्रमण

लेकिन जब बौद्ध धर्मावलंबियों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य कायम किया तब से लेकर अब तक यहां बौद्ध धर्म की महायान शाखा के देवता अवलोकितेश्वर की पूजा होती है।

संयमित धर्म

13वीं शताब्दी के आखिर तक आतेआते अंगकोर वाट की संरचना को संवारने का काम भी शिथिल पड़ता गया। और साथ ही थेरवाद बौद्ध धर्म के प्रभाव के अंतर्गत एक संयमित धर्म का उदय होने लगा।

खमेर साम्राज्य पर आक्रमण

इसी दौरान अंगकोर और खमेर साम्राज्य पर आक्रमण बढ़ने लगे। 16वीं शताब्दी के आगमन से पहले ही अंगकोर का सुनहरा अध्याय लगभग समाप्त हो गया और अन्य भी बहुत से प्राचीन मंदिर खंडहर में तब्दील हो गए।

मंदिर की देखभाल

15वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी ईसवी तक थेरवाद के बौद्ध साधुओं ने अंगकोर वाट मंदिर की देखभाल की, जिसके परिणामस्वरूप कई आक्रमण होने के बावजूद इस मंदिर को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा।

एएसआई

बाद की सदियों में अंगकोर वाट गुमनामी के अंधेरे में लगभग खो सा गया था। 19वीं शताब्दी के मध्य में एक फ्रांसीसी अंवेषक और प्रकृति विज्ञानी हेनरी महोत ने अंगकोर की गुमशुदा नगरी को फिर से ढूंढ़ निकाला। वर्ष 1986 से लेकर वर्ष 1993 तक भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस मंदिर के संरक्षण का जिम्मा संभाला था।

पवित्र तीर्थ स्थल

आज के समय में अंगकोर वाट दक्षिण एशिया के प्रख्यात और अत्याधिक प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों में से एक है।

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